Lifestyle: राज महाराजा सर्दियों में क्या खाते थे? शाकाहारी या मांसाहारी, जानें क्या पसंद करते थे

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हाइलाइट्स

राजे रजवाड़ों का खानपान
सर्दियों के मौसम में बदल जाता था खानपान

जयपुर. सर्दियों के मौसम को खानपान की दृष्टि से काफी अहम माना जाता है. विभिन्न इलाकों में सर्दी से बचाव के लिए तरह-तरह लड्डू के समेत कई ऐसे व्यंजन बनाए जाते हैं तो सेहत को तंदुस्त रखने के साथ ही सर्दी से बचाव और ताकत देने वाले होते हैं. रईसों से लेकर आमजन तक के घरों में सर्दियों के मौसम में खानपान बदल जाता है. यह आज से नहीं बल्कि पुरातन समय से चला रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि राजा महाराजा सर्दियों में किस खास भोजन या व्यंजन का उपयोग करते थे.

इतिहासकारों की मानें तो राजा महाराजा भी वो ही खाते थे जो सेहत के लिए खास माना गया है. फर्क बस इतना है कि उसमें क्वालिटी से कोई समझौता नहीं होता था. वह सर्वोत्तम होता था. अन्य चीजों की तरह उनका खाना भी लग्जरी होता था. ऐसा भी नहीं है कि सभी की पंसद एक जैसी थी, बल्कि उनका खानपान भी सर्दियों के मौसम में पूरी तरह से स्थानीयता से जुड़ा था. पहले साधन कम थे लिहाजा चीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने और ले जाने में काफी वक्त लगता था. इसलिए स्थानीय चीजों के उपभोग पर ही जोर रहता था.

बाजरे तथा मोठ की खिचड़ी पर खास जोर देते थे
शेखावाटी के इतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं कि राजा महाराजा भी सर्दियों के मौसम में शाकाहारी में विशेष रेसिपी से बने गौंद और मैथी के लड्डुओं के साथ ही बाजरे तथा मोठ की खिचड़ी पर खास जोर देते थे. इसकी तासीर गर्म होती है. यह राजस्थान में बहुतायत होते हैं. इसके लिए बाजरे और मोठ के पानी में भिगोया जाता था. उसमें फुलाव आने के बाद दोनों को मिक्स कर ऊंखली में कूटा जाता था. इस खिचड़ी में गाय का शुद्ध पीला घी मिलाते थे. इस खीचड़ी को शाही रसोड़ों के खानसामे विशेष तरीके से बनाते थे.

सर्दियों में गर्म दूध में केसर मिलाकर पीते थे
वहीं अधिकतर राजा महाराजाओं के बारे में कहा जाता है कि सर्दियों में गर्म दूध में केसर मिलाकर पीते थे. केसर बलवर्धक होती है. वहीं सर्दियों में मासांहारी में तीतर, हिरण और जंगली सूअर के मांस को प्राथमिकता दी जाती थी. इनकी तासीर भी गर्म होती है. हालांकि आज तीतर और हिरण के शिकार पर बैन है लेकिन पहले ऐसा नहीं था. राजा का आदेश ही सबकुछ था. लिहाजा इनकी कमी नहीं रहती थी. इनके शिकार का जिम्मा एक जाति विशेष को दिया जाता था.

स्थानीय उपज की उपलब्धता के आधार पर ही उनका खानपान था
इतिहास के सेवानिवृत्त कॉलेज व्याख्याता कमल कोठारी बताते हैं कि इतिहास पर नजर डालें तो अंग्रेजी से साम्राज्य से पहले और बाद के समय में राज महाराजाओं के खान पान और खाने के तरीके में काफी बदलाव आ गया था. पहले वह पूरी तरह से देसी था बाद में उसमें अंग्रेजी कल्चर हावी हो गया था. सर्दी हो गर्मी स्थानीय उपज की उपलब्धता के आधार पर ही उनका खानपान था. राजस्थान में सर्दियों में चाहे आमजन हो या राजा महाराजा बाजरे से बना खीचड़ा हमेशा से प्राथमिकता में रहा है. राजे रजवाड़ों में भी सर्दियों के आम खानपान के साथ खीचड़ा और दाली बाटी प्राथमिकता में रहता था. बीकानेर रिसायत के स्थापना दिवस पर उस इलाके में हर घर में खीचड़ा बनता है.

बाजरे का सोगरा, खीचड़ा, कढ़ी, गुड़ और शुद्ध देसी घी
वहीं इतिहास पर बारीकी से नजर रखने वाले बीकानेर के शिक्षाविद् जानकी नारायण श्रीमाली बताते हैं राजे रजवाड़े भी गर्म तासीर वाले बाजरी और मौठ के स्वास्थ्यवर्धक व्यजंनों पर ही जोर देते थे. इनमें बाजरे का सोगरा, खीचड़ा, कढ़ी, गुड़ और शुद्ध देसी घी के साथ ही दूध में केसर का उपयोग करते थे. वहीं मूंग बड़ी भी इस फेहरिस्त में शामिल है. बाजरी राजस्थान का मुख्य खाद्य पदार्थ है. यह पौष्टिक होने के साथ की स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभदायक है. फर्क सिर्फ इतना है कि राजे रजवाड़ों में उनके खानसामें बेहतरीन व्यवजंन बनाते थे वहीं आमजन उसे सादे तरीके से खाता था.

Tags: Food, Jaipur news, Lifestyle, Rajasthan news

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