हाइलाइट्स
राजस्थान हैरिटेज शराब का सफर
राजस्थान स्टेट गंगानगर शुगर मिल बनाती है
देश दुनिया में प्रसिद्ध है राजस्थान की रजवाड़ी शराब
जयपुर. शराब पीना निसंदेह हानिकारक है. लेकिन फिर भी दुनिया भर इसे जमकर पीया जाता है. खुशी या गम दोनों में शराब का बेजा इस्तेमाल होता है. यूं तो दुनियाभर में कई तरह-तरह की मदिरा बनती हैं. लोग अपनी-अपनी पॉकेट की हैसियत के अनुसार देसी से लेकर महंगी ब्रांडेट लग्जरी शराब का लुत्फ उठाते हैं. अंग्रेजी और देसी शराब किसी भी राज्य सरकार के लिए बड़ा पैसा जुटाती हैं. सरकारें भले ही उनका प्रचार नहीं करती है मुनाफा कमाने के लिए साल-दर साल नई-नई शराब नीतियां लाती हैं.
राजस्थान राजे रजवाड़ों का प्रदेश है. यहां की हर चीज अनूठी है और देश दुनिया में करोड़ों लोग उनके मुरीद हैं. इनको देखने के लिए दुनियाभर के पर्यटक हजारों कोस दूर से यहां आते हैं. राजस्थान के राजे रजवाड़ों के किलों और महलों की तरह यहां की रजवाड़ी दारू भी कम फेमस नहीं है. रेतीले धोरों की धरती राजस्थान में पुराने जमाने में हर रजवाड़े का शराब बनाने का अपना एक फॉर्मूला था. राज परिवारों से जुड़े कुछ खास लोग उन देसी फॉर्मूले से शाही परिवारों के लिए शराब बनाते थे. वे फॉर्मूले आज भी उनके पास हैं. इन्हें पीने का तरीका भी बेहद अलग है.
राजस्थान स्टेट गंगानगर शुगर मिल बनाती है रजवाड़ी शराब
चूंकि उस समय कोई शराब नीति नहीं थी. लिहाजा सब अपने-अपने फॉमूलों से इन वाइंस को बनाते थे. राजा ने जिसे अधिकृत कर दिया वो उसमें लग गया. लेकिन आज ऐसा नहीं है. अन्य राज्यों की तरह राजस्थान सरकार की भी अपनी शराब नीति है. सरकारी लाइसेंस के अलावा शराब बनाना अवैध है चाहे वो कोई क्यों नहीं हो. यह बात दीगर है कि अब वहां शराब नहीं बनती लेकिन उन फॉर्मूलों का इस्तेमाल कर राजस्थान स्टेट गंगानगर शुगर मिल रजवाड़ी शराब बनाती है. इनमें सबसे राजस्थान में जिस रजवाड़ी वाइन की डिमांड रहती है वह किसी बड़े राजघराने से नहीं होकर छोटे ठिकाने महनसर से जुड़ी है. महनसर राजस्थान के शेखावाटी इलाके के झुंझुनूं जिले का ठिकाना है. वहां की सौंफ, इलाइची और संतरा वाइन काफी चर्चित है.
2008 में काम शुरू किया गया था हैरिटेज शराब का काम
राजा रजवाड़ों की शराब के फॉर्मूलों को लेकर रजवाड़ी शराब यानी हैरिटेज वाइन तैयार करने के लिए राजस्थान में आज से करीब 16 साल पहले वर्ष बीजेपी के वसुंधरा राजे राज 2008 में काम शुरू किया गया था. उस समय इस शराब को बनाने के लिए जीएसएम के साथ ही महनसर के ठिकानेदार को भी लाइसेंस दिया गया था. राजस्थान स्टेट शुगर मील पहले साधारण स्प्रीट से देसी शराब बनाती थी. तब उसके पास केवल केसर कस्तूरी और जगमोहन ब्रांड होते थे.
फार्मूले को उजागर नहीं किया जा सकता
जयपुर स्थित जीएसम की के प्रबंधक पंकज वर्मा बताते हैं आज जीएसएम अपने सभी प्रकार की वाइन स्प्रीट के अपग्रेड वर्जन ENA यानी एक्सट्रा न्यूट्रल एल्कोहल से बनाती है. जीएसएम ने अपने दायरा बढ़ाया और हैरिटेज हर्बल लीकर में कदम रखा. यूं तो जीएसएम की प्रदेशभर में करीब 17 यूनिट हैं लेकिन हैरिटेज वाइन केवल जयपुर में ही तैयार की जाती है. इन सभी हैरिटेज लीकर्स के फॉर्मूलों को बेहद सीक्रेट रखा जाता है. यहां तक कि जीएसम भी उनको उजागर नहीं कर सकता है.
जीसएम देता है फार्मूले की रॉयल्टी
बकौल वर्मा जीएसम ने जितने भी ठिकानों के फॉर्मूलो ले रखा है उनको उनके ब्रांड की बिक्री पर रॉयल्टी दी जाती है. जिस रजवाड़े या ठिकाने का फॉर्मूला है उसकी बोतली की शेप अलग होने के साथ ही उसका लोगो भी उस लगाया जाता है. बोतल और कार्टन दोनों पर. जीएसएम ने अब इसमें इसमें और सुधार किया और अब वह अपने केसर कस्तूरी ब्रांड को रॉयल केसर कस्तूरी के नाम से रिलॉन्च कर रहा है.
चालीस से लेकर 150 तक मसालों का उपयोग किया जाता है
वहीं लंबे समय से जीएसएम से जुड़े महेन्द्र सिंह राजावात बताते हैं कि ये हैरिटेज लीकर या रजवाड़ी दारू कई तरह के नचैुरल मसालों से तैयार की जाती है. इनमें अलग-अलग रजवाड़ों फॉर्मूलों के अनुसार करीब चालीस से लेकर 150 तक मसालों का उपयोग किया जाता है. इन मसालों को भिगाने, गलाने और उसे पूरी तरह से तैयार करने में पांच से 15 दिन का समय लगता है. इनमें देश दुनिया में तीर्थ नगरी के नाम से प्रसिद्ध पुष्कर में पैदा होने वाले बेहतरीन गुलाब की पत्तियों का उपयोग किया जाता है. आपको यह जानकार आश्चर्य होगा इस वाइन को बनाने में दूध और घी का भी उपयोग होता है.
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FIRST PUBLISHED : December 23, 2023, 17:11 IST