



जयपुर/भोपाल. राजनीति के महामार्ग पर दो दिग्गजों की गाड़ियों को रिबूट करना है. ये दिग्गज हैं कमलनाथ और अशोक गहलोत. राजनीति के इन दिग्गजों को अपनी राजनीतिक यात्रा के इस चरण में हार का स्वाद चखना पड़ा है. कमलनाथ और उनके समर्थकों को पूरी उम्मीद थी कि इस बार मतदाता उन्हें चुनेंगे. उनकी इस उम्मीद का आधार ये था कि उनके समर्थकों की राय में उनके साथ ‘दगा’ हुई है. साल 2018 में जनता ने उन्हें चुन कर सरकार बनाने का मौका दिया था, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदल से सरकार गिर गई. कमलनाथ के समर्थक इसे लेकर प्रचार कर रहे थे कि जनता ने कांग्रेस को चुना लेकिन बीजेपी ने सरकार बना ली. इन लोगों को उम्मीद थी कि इस प्रचार से सहानुभूति वोट कमलनाथ और कांग्रेस को मिलेंगे. गहलोत के समर्थकों को भी जीत की उम्मीद थी. नतीजे सामने हैं. दोनों की पराजय हुई. हालांकि, देश की राजनीति में ऐसे उदाहरण शायद ही मिलें कि किसी नेता ने उस तरह से राजनीति से सन्यांस लिया हो जैसा खेलों से खिलाड़ी किसी न किसी समय ले लेते हैं. वैसे भी कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं.
कमलनाथ
चुनाव परिणाम के बाद अब इन दोनों की राह कठिन दिखती है. कमलनाथ एक सफल उद्योगपति भी हैं. इस क्षेत्र में उनकी ठीक-ठाक धाक और साख दोनों है. संजय गांधी के उदय के साथ कांग्रेस की राजनीति में उतरने वाले कमलनाथ आम तौर पर केंद्र की ही राजनीति तक महदूद रहते थे. माधवराव सिंधिया भी अस्सी के दौर में कांग्रेस की राजनीति में आ चुके थे. उन्होंने चुनाव तो संसद का लड़ा लेकिन उनकी निगाह भी भोपाल की कुर्सी पर रहती ही थी. माना जाता है कि सिंधिया को रोकने के लिए दिग्विजय और कमलनाथ एकजुट हुए.
सिंधिया फैक्टर
इनकी ये एकजुटता 2019 तक कायम रही. इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम बनने से रोकना था. हुआ भी यही और दोनों दिग्गजों की रणनीति ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनने से रोक दिया, लेकिन इसका नतीजा यहां तक आ पहुंचा. साल 2023 के चुनाव में कांग्रेस ही सत्ता तक नहीं पहुंच सकी. अब दिग्विजय सिंह के सामने तो राह है. कांग्रेस की फर्स्ट फैमिली में उनकी ठीक-ठाक पकड़ भी बताई जाती है. राहुल गांधी की यात्रा के दौरान ये सब देखने को भी मिला था, लेकिन अब कमलनाथ की वैसी पकड़ राहुल-प्रियंका तक हो इसमें जानकार संदेह जताते हैं. वैसे भी कांग्रेस कई बार युवाओं को जोड़ने का नारा बुलंद कर चुकी है. कांग्रेस को आने वाले लोक सभा चुनावों के लिए भी उन कंधों की तलाश होगी जो पूरा समय देकर पार्टी का बेड़ा पार करे. कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ राजनीति में हैं और टिकट बंटवारे के दौरान उनकी महत्वाकांक्षा दिख चुकी है.
अशोक गहलोत
अब बात अशोक गहलोत की. सचिन पायलट की पहली बगावत के दौरान ‘गांधी-परिवार’ उनके साथ ताकत से खड़ा दिखा था. जबकि राजस्थान में टिकट बंटवारे के दौरान साफ दिखा कि कांग्रेस की इस ‘फर्स्ट फैमिली’ ने उनका साथ नहीं दिया. हां, हालात और न बिगड़ने देने के लिए कांग्रेस आला कमान ने गहलोत के कहे मुताबिक टिकट जरूर दिला दिए. अब हार की जिम्मेदारी भी उन्हीं के माथे मढ़ने की कोशिश होगी.
गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी राजनीति में उतर चुके हैं. अब उनकी राह को आसान बनाना उनकी इच्छा हो सकती है, जैसा कि होती है. क्योंकि जिस तरह से राजपूताने की राजनीति में गहलोत ने अपनी ताकत से एक नया समीकरण बनाया और चलाया उसे आगे बढ़ाने पर वैभव राजनीति में शक्तिशाली हो पाएंगे. फिलहाल तो यही माना जा रहा है कि गहलोत के बाद राजस्थान कांग्रेस की ड्राइविंग सीट पर सचिन पायलट ही होंगे.
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FIRST PUBLISHED : December 4, 2023, 14:01 IST