



MP Election Result 2023: मध्यप्रदेश में अप्रत्याशित रूझानों से भाजपा गदगद है. भाजपा ने 167 सीटों पर बढ़त बना ली है जबकि कांग्रेस 62 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है. इतनी बड़ी जीत की उम्मीद भाजपा के नेताओं को भी नहीं था. यह जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि कांग्रेस चुनाव से पहले ही नैरेटिव की लड़ाई में भाजपा को पछाड़ चुकी थी. आपिनियन पोल कांग्रेस के पक्ष में थी. लेकिन एक्जिट पोल तक पांसा पलट चुका था. जानिए कैसे भाजपा ने चुनावी मैदान में मात दी…
लाड़लियां गेमचेंजर साबित हुईं
मार्च में जब लाड़ली बहना स्कीम आई थी, तभी से इसे गेमचेंजर माना गया. शिवराज सरकार ने इसके प्रचार प्रसार में कोई कमी न रखी. हर मंच से लाड़लियों की बात कही. इस योजना की आड़ में भाजपा सरकार की एंटी इंकम्बेंसी प्रो इंकम्बेंसी में बदल गई.
मोदी मैजिक और केंद्रीय संगठन
पूरे चुनाव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया. वे ही स्टार कैंपेनर थे. उनकी सभाओं से रुख पलट गया. उनके नेतृत्व में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रणनीति बनाई. और इसे एक्जिक्यूट करने की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और भूपेंद्र यादव को दी गई. इससे स्थानीय क्षत्रपों को भीतरघात का मौका नहीं मिला. रूठों और असंतुष्ठों को वक्त रहते मना लिया गया. अक्टूबर में दशहरे के बाद से संघ के समन्वय से कार्यकर्ताओं को यह यकीन दिलाया गया कि भाजपा चुनाव जीत रही है. शाह के नेतृत्व में कार्यकर्ता जमीन पर सक्रिय हुए और लोगों से इस बार चुनाव जिताने की भावुक अपीलें की.

हिंदुत्व को कोर मुद्दा बनाए रखा
उत्तरप्रदेश और गुजरात की तर्ज पर शिवराज सरकार का इस कार्यकाल में हिंदुत्व पर फोकस किया गया. राम मंदिर का जमकर प्रचार किया गया. महाकाल कारिडोर समेत अन्य धार्मिक कारिडोरों का निर्माण किया गया या घोषणा की गई. खरगोन दंगों में बुलडोजर चला. इससे एक तरफा ध्रुवीकरण हुआ.
सात सांसदों का दांव
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस के सर्वे में यह बात साफ हो गई थी कि शिवराज के चेहरे पर नाराजगी है. इसे दूर करने के लिए भाजपा ने 7 सांसदों और केंद्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव में उतारकर बड़ा दांव चला. तब इसकी काफी आलोचना की गई. धीरे-धीरे भाजपा उन मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने में कामयाब हो गई कि जो कि शिवराज के चेहरे पर राजी नहीं था.
51% वोट शेयर का टारगेट
राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश की मौजूदगी में तीन साल पहले एक अन्य महत्वपूर्ण फैसला यह लिया गया कि प्रदेश में संगठनात्मक स्तर पर 51 प्रतिशत वोट हासिल करने के लिए काम किया जाए. ऐसा होने पर पार्टी की जीत होना तय है. इसके बाद डेढ़ साल के अंतराल में बीजेपी ने बूथ लेवल, शक्ति केंद्र और मंडल स्तर पर 51 प्रतिशत वोट हासिल करने की रणनीति के मद्देनजर कार्यक्रम तय किए.
आदिवासियों के मुद्दे को पहले ही भांपा
भाजपा ने डेढ़ साल पहले ही आदिवासियों में कांग्रेस की स्ट्रेंथ को समझ लिया था. लिहाजा, यह तय किया गया कि आदिवासी बाहुल्य सीटों पर बीजेपी नेताओं की मीटिंग और उनके दौरे अधिकतम होने चाहिए. इसके साथ ही सरकार को आदिवासियों के हितों में योजनाएं बनाने के लिए कहा गया. शिवराज ने इसके बाद पेसा कानून लागू किया और आदिवासी युवाओं के लिए अन्न आपके द्वार योजना शुरू की. आदिवासी महापुरुषों के बारे में तथ्यों की तलाश कर उनकी गौरव गाथा को सबके सामने लाने का काम किया गया.
दो माह पहले टिकट का ऐलान से हुआ फायदा
भाजपा ने चुनाव आचार संहिता के पहले ही अगस्त में 39 टिकटों का ऐलान कर दिया था. यह वह सीट थीं जहां कांग्रेस मजबूत थी. इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस के जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा जैसे नेताओं को हराने में कामयाबी मिली. यह संघ और भाजपा के मैदानी फीडबैक की रणनीति का हिस्सा थी. जिसकी रिपोर्ट में यह आंकलन किया गया कि ऐसा करने पर नाराज कार्यकर्ताओं का गुस्सा चुनाव होने तक खत्म हो जाएगा और वे पार्टी के लिए एकजुट हो जाएंगे.
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FIRST PUBLISHED : December 3, 2023, 16:23 IST