इस वर्ष के भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार के लिए राजस्थान के युवा कवि देवेश पथ सारिया को चुना गया है. देवेश को उनके कविता संग्रह ‘नूह की नाव’ के लिए इस सम्मान से सम्मानित किया जाएगा. रजा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी अशोक वाजपेयी ने दी.
पुरस्कार के लिए कविता संग्रह का चयन आनद हर्षुल ने किया है. इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आनंद हर्षुल ने कहा कि यह सुखद था कि इस बार विभिन्न स्रोतों से प्राप्त कविता संग्रहों में स्त्री कवियों की संख्या ज्यादा थी. अंतिम रूप से जिन पांच कवियों को चुना गया उनमें दो स्त्रियां थीं. पर कविता को जीवन में रच दी गई सीमाओं का उल्लंघन करना आना चाहिए. जब हम यह नहीं कर पाते हैं तो कविता में, मनुष्य-जीवन की व्यापकता का अन्वेषण नहीं कर पाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमेशा स्त्री या पुरुष होने से बड़ा, कवि होना होता है और यह होना, हमें आना चाहिए. मैंने देवेश पथ सारिया के संग्रह ‘नूह की नाव’ को इस पुरस्कार के लिए इसलिए चुना कि उनकी कविताओं में जीवन में रच दी गई सीमाओं के उल्लंघन का प्रयत्न मुझे दिखता है. दिखता है कि वे अपनी कविताओं में ‘पृथ्वी की नाभि का हाल’ जानने की कोशिश कर रहे हैं.’
1986 भरतपुर में हुआ था. देवेश ने अलवर से भौतिक शास्त्र में एमएससी की है और नैनीताल ऑब्जर्वेटरी से स्टार क्लस्टर्स पर पीएच.डी. की है. वर्तमान में वह ताइवान में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्चर हैं. उनकी रचनाएं तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. देवेश की कविताओं का अनुवाद मंदारिन चायनीज, अंग्रेजी, स्पेनिश, पंजाबी, बांग्ला और राजस्थानी भाषा-बोलियों में हो चुका है. प्रस्तुत हैं देवेश की चर्चित कविता-
पीसा की झुकी मीनार पर
कोई उसे धक्का मारकर टेढ़ी कर देने का श्रेय लेना चाहता था
कोई जुड़ जाना चाहता था उछलकर
सूरज और मीनार को जोड़ती काल्पनिक सरल रेखा से
किसी ने कोशिश की उसे अंगूठे से दबा देने की
किसी ने आइसक्रीम के शंकु में भर खा जाने की
ट्रिक फोटोग्राफी करने में जुटे सैलानियों के बीच
मैं विराटता महसूस कर रहा था
पीसा की झुकी मीनार की
अष्टावक्र के एक वक्र सी झुकी
उस मीनार के सामने मेरे पंहुच जाने में
संयोग था तो बस इतना
कि फ्रांस के उस शहर नीस से
जहां मैं काम से गया था
बहुत दूर नहीं था इटली का पीसा शहर
इतना दूर तो हरगिज़ नहीं
कि उन्नीस साल का इंतज़ार उसके सामने घुटने तक दे
और बचपन में स्वयं से किये वादे को पूरा करने के लिए
मैं फूँक ही सकता था
बचाई हुई कुछ रकम
उन्नीस साल पहले
नौवीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान
पढ़ा था मैंने गैलीलियो का वह प्रसिद्ध प्रयोग
वस्तुओं के द्रव्यमान और पृथ्वी के गुरूत्व के बारे में
जो पीसा की इसी झुकी मीनार से किया गया था
तभी मेरी खुद के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक के दौरान
यह तय हुआ था कि मुझे जाना है पीसा
झुकी मीनार पर चढ़ना है
हालांकि तब मेरे पास नहीं होते थे साइकिल का पंक्चर जुड़वाने के भी पैसे
और कई बार जुगाड़ के पीछे लटककर आता था मैं स्कूल
यह जानकर कि जब तक मीनार के द्रव्यमान केंद्र से डाला गया लंब
गिरता रहेगा आधार पर मीनार के
तब तक ही खड़ी रहेगी मीनार
मैं करता रहा हूं
पीसा की मिट्टी की पकड़ मजबूत होने की प्रार्थना
मीनार तक पंहुचना
मेरी प्रार्थनाओं और अदम्य कोशिशों का फल था
मीनार के ऊपर चमकता वह सूरज
किताबों और टेलिस्कोप डोम में किये
सर्द रतजगों के बाद हुआ था नसीब
चढ़ते हुए मीनार की संकरी सीढ़ियां
मैंने हवा में तैरता हुआ महसूस किया
गैलीलियो का झीने परदे जैसा अस्तित्व
बीच से घिस चुके सीढ़ियों के पत्थरों पर
मैंने ढूँढा उन्हें घिसने में गैलीलियो के पांवों का योगदान
यह उम्मीद रखते हुए
कि चार सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में
काश कि ना बदले गए हों सीढ़ियों के पत्थर
मैं नहीं जानता कि
गुरूत्व के अपने प्रयोग के बाद महान गैलीलियो
मीनार के ऊपर से हंसे होंगे या रहे होंगे अविचल
यूं भी दुनिया के सामने सिद्ध करने से पहले
वे स्वयं तो जानते ही थे निपट सच, गुरूत्व के उस पहलू का
वैसे भी यह नहीं था गैलीलियो का एकमात्र प्रयोग
यह एक पड़ाव भर था उनकी अनगिनत उपलब्धियों की यात्रा का
कभी किसी उदासी के दौर में
जब दबाया बजा रहा था विज्ञान को पोंगी आवाज़ों के द्वारा
शायद कभी उदास बैठने आए हों गैलीलियो मीनार पर
तब शायद हंसे हों वे पूरी दुनिया की मूर्खता पर
मीनार की दीवार से पीठ सटाकर
या, हँसते-हँसते चढ़ीं हों मीनार की सीढ़ियां शायद
उन्हीं सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद
लटके हुए, बड़े-से ऐतिहासिक घंटे के सामने
चुपचाप चला आया था मेरे सामने
कितने ही जीवित बिम्बों का सैलाब
कुछ मेरे हिस्से का इतिहास
कुछ गैलीलियो के बारे में पठित-कल्पित का फ्यूज़न
पीसा की झुकी मीनार के सबसे ऊपर पंहुचकर
मैं तनकर नहीं खड़ा था, जरा सा भी
मेरी आँखें थीं नम
और मैं फिर नौवीं कक्षा में था।
भारत भूषण अग्रवाल सम्मान
हिंदी काव्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला ‘भारत भूषण अग्रवाल सम्मान’ बहुत ही प्रतिष्ठित पुरस्कार है. पहले यह पुरस्कार एक कविता के लिए दिया जाता था, लेकिन अब कविता संग्रह पर दिया जाता है. रज़ा फाउंडेशन यह पुरस्कार प्रतिष्ठित कवि भारत भूषण अग्रवाल की स्मृति में प्रदान करता है. इस पुरस्कार के अंतर्गत सम्मानित कवि को 21,000 रुपए प्रदान किए जाते हैं.
हिंदी के चर्चित कवि भारत भूषण अग्रवाल का जन्म 3 अगस्त, 1919 उत्तर प्रदेश के मथुरा में हुआ था. उन्होंने आगरा और दिल्ली से अपनी तालीम हासिल की. तालीम पूरी करने के बाद उन्होंने आकाशवाणी और कई साहित्यिक संस्थानों में अपनी सेवाएं दीं. पैतृक व्यवसाय से दूर उन्होंने साहित्य लेखन को ही अपना कार्य माना. अपने पहले कविता संग्रह ‘छवि के बंधन’ (1941) के प्रकाशन के बाद वे मारवाड़ी समाज के मुखपत्र ‘समाज सेवक’ के संपादक बनकर कलकत्ता चले गये. यहीं पर उनका परिचय बंगाली साहित्य और संस्कृति से हुआ. भारत भूषण ‘तार सप्तक’ (1943) में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में शामिल हुए और अपनी कविताओं के लिए प्रसिद्ध हुए. ‘जागते रहो’ (1942), ‘मुक्तिमार्ग’ (1947) लिखने के दौरान वे इलाहाबाद से प्रकाशित पत्रिका ‘प्रतीक’ से भी जुड़े रहे और 1948 में ऑल इंडिया रेडियो में कार्यक्रम अधिकारी बन गये. उनकी कविता ‘उतना वह सूरज है’ के लिए 1978 में साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया था. 23 जून, 1975 में उनकी मृत्यु हो गई.
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FIRST PUBLISHED : December 23, 2023, 19:06 IST